इम्तहान की पूरी थकावट

 दही , भल्ले और गोल -गप्पे | एक दो दिन उसनें कोई दवा नहीं ली और बहाना करती रही कि वह बिल्कुल ठीक है | तीसरे दिन मैनें उसके कमरे में उसे उदास पड़े हुये देखा तो मैनें पूछा कि क्या बात है | उसनें कहा, " कुछ नहीं ठीक हूँ | थोड़ा आराम कर रही हूँ | थकावट सी है |" मैनें उसके सिर पर हाँथ रखा तो पाया कि माथा जल रहा है | कलाई पकड़ कर नब्ज देखी तो जान गया कि बहुत तेज बुखार है | मैनें कहा कि मैं दूसरे कमरे में बैठा हूँ | कपड़े  बदल ले | चल मेरे साथ अभी राकेश का क्लीनिक खुला होगा | लगता है कुछ इन्फेक्शन है | ठुनकी भी आ रही है शायद इन्जेक्शन लेना होगा | मेरी बात मानकर अपर्णां मेरे साथ क्लीनिक पहुँची | रमेश दो तीन मरीजों को अपनी जगह बैठा छोड़कर मुझे और अपर्णां को अन्दर के कमरे में ले गया | हाल चाल पूछा ,आला लगाकर धड़कन देखी , टैम्परेचर लिया और कहा कोई बात नहीं है | मैं इन्जेक्शन दे देता हूँ और तीन दिन की दवा भी चौथे दिन अपर्णां आकर मुझे  बता जायेगी और शायद तब तक ठीक ही हो जाये  | मैं निश्चिन्त होकर अपर्णां के साथ लौट आया | एक बार तो बुखार कुछ उतरा हुआ सा लगा पर रात्रि के दस ग्यारह बजे फिर बढ़ गया | अपर्णा दवा खाती रही कभी बुखार कम  हो जाता कभी बढ़ जाता | तीन दिन बीत गये | मैं चिन्ता में पड़ गया | किसी जरूरी काम से मुझे कालेज जाना था इसलिये मैनें अपर्णां की मां से कहा कि राकेश के साथ इसे रमेश के क्लीनिक पर भेज देना | दस बजे के आस -पास क्लीनिक खुलता है | भूल मत जाना शायद एकाध इन्जेक्शन और लेना होगा | कालेज से  बारह बजे मैनें घर पर फोन किया और अपर्णां की माँ से पूछा कि अपर्णां क्लीनिक गयी या नहीं तो अपर्णां की  माँ ने बताया कि राकेश के दोस्त आ गये थे और उनके साथ वह कहीं चला गया है कहता था अपर्णां   अकेली चली जायेगी पर वह अकेली जानें को राजी नहीं होती | मैनें कहा अपर्णां को फोन पर बुलाओ | अपर्णां फोन पर आयी और उसनें टूटी सी आवाज में कहा हाँ पिताजी मैं अपर्णां हूँ | मैनें उससे कहा , " बेटे क्या बात है तुम क्लीनिक क्यों नहीं गयीं | " राकेश तुम्हारे साथ न भी हो तो क्या रमेश भी घर का लड़का है तुम्हारे भाई जैसा है | तुम एम.ए. अंग्रेजी में पढ़ती हो और वह एक डाक्टर है | जाओ तुरन्त क्लीनिक में जाओ क्योंकि क्लीनिक बन्द होनें का समय होनें वाला है | मैनें फोन रख दिया जानता था कि अपर्णां अब जायेगी ही | उस दिन कालेज में किसी होने वाले समारोह के संम्बन्ध  में   मीटिंग बुलायी गयी थी | मैं काफी लेट घर पहुंचा | लगभग चार बजे होंगें अपर्णां की माँ नें घर में घुसते ही मुझसे  कहा   कि अपर्णां अपनें कमरे में पडी है और रो रही है | मैनें कहा क्या बात है ? क्या तबियत ज्यादा खराब हो गयी और मैं उन्हीं कपड़ों में अपर्णां के कमरे में पहुँच गया | वह उठकर बैठ गयी और रोने लगी | मेरे पीछे -पीछे उसकी माँ भी आयी और उसके पास पड़ी चारपायी पर बैठ गयी मैं सामनें पड़ी कुर्सी पर बैठ गया | मैनें फिर कहा  अपर्णां बोलो  रोती क्यों हो ? मैं बताती  हूँ अपर्णां क्यों रो रही है | तुम्हें दुनिया की कोई समझ नहीं है ,तुम सबको अपनी ही तरह साफ़ -सुथरा समझते हो | सिनेमा नें आजकल के इन नये लौंडों को बिगाड़ दिया है | जब अपर्णां गयी तो क्लीनिक बन्द होनें को था रमेश का सहयोगी भी चला गया था | रमेश नें कहा बुखार नहीं उतरा और उसनें अपर्णां का हाँथ पकड़ कर देखा और कहा तेज बुखार है अन्दर चलो इन्जेक्शन लगाना होगा | अपर्णां नें कहा लो  मैं बांह की आस्तीन उठाती हूँ यहीं इन्जेक्शन लगा दो उसनें कहा नहीं पूरे असर के लिये बड़ा इन्जेक्शन लगाना पड़ेगा ,अन्दर चलो | अपर्णां अन्दर के कमरे में गयी तो तो उसनें बाहर के कमरे का दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया | फिर वह भीतर के कमरे में आया और बोला , " अपर्णां मैं तुमसे  प्यार करता हूँ | मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ | तुम हाँ कर दो तो मैं तुम्हारे पापा से बात करूँ | अपर्णां गुस्से से फूट पड़ी उसनें कहा बेशर्म नीच भाई होकर इस प्रकार की गन्दी बात करता है | रमेश नें कहा अच्छा बुरा मत मानों | मैं पूरे असर के लिये जांघ में इन्जेक्शन लगाऊंगा ,सलवार हटानी पड़ेगी | अपर्णां नीचे उतर आयी और कमरे में रखा हुआ एक गुलदान उसके मुंह पर उठाकर  मार दिया फिर झपट कर बाहर वाले कमरे में आयी | बन्द सिटकनी खोली और सड़क पर से भागकर घर आ गयी |