जिन्दगी
जन्म मृत्यु खूँटों पर लटकी हुयी डोरी है
आशा है पिपाशा है
अर्थहीन भाषा है
तार -तार हो रही सड़ी हुयी बोरी है
तार जो कटकर स्वतन्त्र है
मुक्त लहरानें को
किन्तु जो
अपनी निरन्तरता में विवश है |
जाल बन जानें को |
सांस का नियमित ,क्रम वद्ध व्यापार
निन्द्रा है
शीत में भू -गर्भित सरीसृप जीवन --------------
इसीलिये दीर्घ सांस
आगत विगत से अनासक्त ,काल -विन्दु
स्फुरित द्योतित क्षण
जीवन की साध है
कवि का आराध्य है |
सरीसृप जीवन