वैष्णव जन तो तैनें कहिये जो पीर पराई जाने

 नरसी मेहता की यह गुजराती भजन पंक्ति गाँधी जी को बहुत प्रिय थी | हर व्यक्ति महान नहीं होता ,क्योंकि बहुत कम व्यक्ति ही ऐसे होते हैं जो स्वार्थ की भावना से ऊपर उठकर जीते  हैं | इस श्रेणी के महापुरूषों को हम उँगलियों की पोरों पर गिन  सकते हैं | 
            प्रश्न इन महापुरुषों की महानता का नहीं प्रश्न इस बात का है कि  हम इन्हें महान मानते क्यों हैं ?यूँ तो बहुत सीधी सी बात है कि प्रत्येक वो  व्यक्ति  जो अपने दुखों की परवाह न करते हुए ,दुसरे के दुखों को समझता वा उन्हें दूर करने का भरसक प्रयत्न करता है ,महान कहलाता है | महानता की कसौटी मात्र दौलत ही नहीं | ऐसे बहुत से व्यक्ति हैं जिनके पास दौलत के नाम पर फूटी कौड़ी तक नहीं होती ,पर दिल का धन इतना अधिक होता है कि सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड में बाँट देने के बाद भी ख़त्म नहीं होता | 
           अगर कसौटी को सामने रखकर मैं महापुरुषों की विवेचना करने लगूँ तो सत्यता अनायास ही सामने आ जायेगी | महात्मा बुद्ध व महावीर स्वामी को मात्र इसलिये महान नहीं कहा जाता कि उन्होंने राज -पाट त्याग दिया था ,बल्कि इसलिये महान कहा जाता है कि उन्होंने हर प्रकार के कष्ट सहकर मानव जाति को इन कष्टों से छुटकारा पाने का रास्ता दिखाया | 
            अशोक महान इसलिये महान नहीं था कि उसने भारत पर एक  छत्र राज्य  किया ,बल्कि इसलिये महान था कि उसने अपनी प्रजा के दुखों को दूर करने की यथासम्भव कोशिश की | महात्मा गान्धी को  वैष्णव जन  इसलिये मानते हैं कि उन्होंने पीर परायी न केवल समझी बल्कि उसे दूर करने का भी भरसक प्रयत्न किया | मदर टेरेसा को लोग इसलिये नहीं पूजते कि वे नोबेल पुरस्कार  विजेता हैं  , बल्कि उनके उस आत्मिक भाव के कारण पूजते हैं , जो वे उन कोढ़ियों व लाचारों के प्रति रखती थीं , जिनके मिलने की कल्पना मात्र से आम व्यक्ति घबरानें लगता है | 
             क्या भामाशाह का नाम भारतीय इतिहास में सिर्फ इसलिये इज्जत से नहीं लिया जाता कि उसने अपने सुखों को तिलांजलि देते हुये अपने देश की स्वाधीनता की रक्षा के लिये सम्पूर्ण धन -दौलत की कुर्बानी कर दी | क्या स्वामी दयानन्द ,स्वामी विवेकानन्द व राजा राम मोहन राय जैसे अनेकों व्यक्ति सिर्फ इसलिये महान थे कि वे विद्वान थे ,नहीं ,वरन वो इसलिए महान थे कि उन्होंने अपनी विद्व्ता का प्रयोग आम जनता के पीर हरण के लिये किया | 
               क्या हम  भूल सकते हैं सुकरात का हँसते -हँसते जहर के प्याले को पी जाना | क्या हमें याद नहीं ईसा का सूली पर चढ़ जाना | क्या हम भूल सकते हैं भगत सिंह व चन्द्रशेखर की कुर्बानी | नहीं ,क्योंकि ये वो व्यक्ति थे जिन्होनें अपनी सम्पूर्ण जिन्दगी मानव जाति के पीर हरण के लिये त्याग दी | महापुरुष वही होता है जो दूसरों के रुदन को हंसी में ,दुःख को सुख में बदल दे | 
               कैसी विडम्ब्ना  है कि हम गान्धी जी के निर्धारित सिद्धान्त ' वैष्णव जन तो तैनें   कहिये जो पीर परायी  जानें  ' को भूल चुके हैं | | आज के युग में हम महानता पाना नहीं बल्कि खरीदना चाहते हैं | लेकिन बड़प्पन बिकता नहीं ,बल्कि सारी जिन्दगी के अथक प्रयत्नों के बाद मिलता है | नीरज का एक आक्रोश भरा गीत ' मैं देख रहा हूँ ,भूख उग रही , गलियों और  बाजारों में , मैं देख रहा हूँ बेकारी ,कफ़न मजारों में ,  खुद मिट जाऊँगा , या  यह सब सामान बदलकर छोडूंगा , मैं मानव तो क्या मानव को भगवान् में बदलकर छोडूंगा | " मेरा मानना है कि व्यक्ति की महानता उसके मानवजाति के लिये किये गये कार्यों में है | 
                 अन्त में मैं यह कहना चाहूंगा कि महात्मा गान्धी के आदर्श के ध्येय को सामने रखकर हमें एक ऐसे राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना चाहिये जो सिर्फ हमारे देश को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व को महानता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे सके |